स्लटवॉक एक तमाचा है

  • Thread starter Thread starter ASHWANI
  • Start date Start date
  • Replies Replies: Replies 0
  • Views Views: Views 1,263

ASHWANI

Member
Joined
13 Feb 2011
Messages
373
Reaction score
44
स्लटवॉक एक तमाचा है
पूजा प्रसाद Wednesday July 20, 2011

टोरंटो में सबसे पहले स्लटवॉक का सफल आयोजन हुआ। अब दिल्ली में हो रहा है और खबरों पर गौर करें तो जल्द ही ऐसे आयोजन देश के कई अन्य शहरों में हो सकते हैं। बड़ी हैरानी होती है यह सुनकर कि दिल्ली में स्लटवॉक की जरूरत ही क्या है!! रेप कैपिटल बन चुके इस शहर में यदि स्लटवॉक की जरूरत नहीं है तो आखिर कहां है? इन आयोजनों को अंजाम देने वाले और इन्हें सफल बनाने वाले न तो एनजीओ हैं और न ही सिलेब्रिटीज। बल्कि, वे आम महिलाएं हैं जिन्होंने इस पितृसत्तामक और बहुरुपिए समाज में खुद के महिला होने की सजा भुगती है।


लड़कियां न अपनी मर्जी के कपड़े पहन सकती हैं न अपनी मर्जी का प्रफेशन चुन सकती हैं। कॉलेज प्रिंसिपल से लेकर धार्मिक गुरु तक महिलाओं को एक खास ड्रेस कोड में बांध देना चाहते हैं। प्रफेशनल आजादी जैसा दोगलापन तो अद्भुत है! जो लोग कहते हैं कि महिलाओं को प्रफेशन तय करने संबंधी आजादी है और वे आज डिफेंस सर्विसेस तक में कार्यभार संभाल रही हैं, उनसे पूछिए कि अपने प्रफेशन को चुनने से ले कर उस प्रफेशन में बने रहने के दौरान वे क्या क्या नहीं झेलती हैं।

कथित आर्थिक शक्ति बन चुके इस देश में महिलाओं का योगदान कितना अधिक है, यह किसी से छुपा नहीं है। लेकिन, फिर भी आज की तारीख में महिलाओं को सड़क पर बेखौफ चलने तक की आजादी नहीं है। वह किसी भी वक्त गंदी फब्तियों, छींटाकशी और रेप की शिकार हो सकती है। कहने को तो हम महिलाएं आजाद हैं लेकिन क्या वाकई...??

दिल्ली जैसे शहर में मेट्रो में महिलाएं सेफली कम्यूट नहीं कर पा रही थीं इसलिए उनके लिए अलग से कूपा जोड़ना पड़ा। नई बसों में सीसीटीवी लगाने पड़े क्योंकि छेड़छाड़ जैसी घटनाएं बढ़ रही थीं। सेक्शुअल हरासमेंट को रोकने के लिए कार्यस्थलों पर 'कोड ऑफ कंडक्ट' अनिवार्य करने पड़े। आखिर क्यों कोई सहकर्मी पुरुष महिलाओं के प्रति बिना किसी 'कोड' के दबाव के तमीज से पेश नहीं आ सकता? औरतों से कैसे व्यहार किया जाना है, यह बताने (और करवाने) के लिए क्यों 'कोड ऑफ कंडक्ट' बनाना पड़ता है?

स्लटवॉक के विरोधी स्त्री- पुरुष कहते हैं सुरैया और मीना कुमारी जैसी सफल और खूबसूरत ऐक्ट्रेसेस तन ढक कर रहती थीं। ये लोग यह भूल जाते हैं कि इन ऐक्ट्रेसेस (पढ़ें, महिलाओं) को भी तब के समाज का विरोध झेलना पड़ा था। कहा गया कि कैमरे के सामने आएंगी तो उनकी और उनके परिवार की इज्जत लुट जाएगी। तब के समय में किसी महिला का फिल्म इंड्स्ट्री या फिल्म गायन के क्षेत्र में उतरना उतना ही बोल्ड कदम था जितना कि आज के समय में किसी मिडिल क्लास लड़की का मॉडलिंग के क्षेत्र में आना और बिकीनी फोटोशूट करना।

अधनंगी महिला को उत्तेजना 'फैलाने' का दोषी बताने वाला बड़ा तबका यह क्यों नहीं मानता कि महिला में कामोत्तेजना पुरुषों के मुकाबले कई गुना ज्यादा होती है, इसके बावजूद वे उत्तेजना के पलों में अधनंगे पुरुष का रेप करने के लिए नहीं दौड़ पड़तीं। यत्र नारी पूजयन्ते जैसे 'डॉयलॉग' मौका पड़ते ही बोल पड़ने वाले समाज के मुंह पर स्लटवॉक एक तमाचा है।



http://blogs.navbharattimes.indiatimes.com/Akathya
 
Back
Top Bottom